नेशनल यूनियनिष्ट जमींदारा पार्टी के पे्ररणा स्त्रोत एवं संस्थापक स्व. दीनबंधू चौधरी छोटूराम जी हैं। उन्होंने उस वक्त जब यह देश अंग्र्रेजों की गुलामी झेल रहा था उस वक्त आम लोगों के हित के लिए ऐसे ऐतिहासिक कार्य किए जिनकी कल्पना भी उस वक्त नहीं की जा सकती थी। उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए जितना भी लिखा जाए वह कम है, परन्तु हमने उनके द्वारा किए गए कार्यों को शब्दों में पिरोनों का प्रयास किया है।
स्व. दीनबंधू चौधरी छोटूराम जी
जमींदारा पार्टी के प्रेरणा स्त्रोत एवं संस्थापक

जमींदारा पार्टी (1923) के संस्थापक – दीनबंधू चौधरी छोटूराम की भूमिका
सर छोटूराम की पढ़ाई तथा वकालत
किसानों के संघर्ष की शुरुआत
राजनैतिक पार्टी की स्थापना तथा राजनैतिक सफरनामा
सर छोटूराम ने अपनी नई राजनैतिक पार्टी नैशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी की वर्ष 1923 में स्थापना की। चौधरी छोटूराम ने झज्जर-सोनीपत क्षेत्र से वर्ष 1935 में चुनाव लड़ा और चुनाव जीतकर पंजाब में कृषि मंत्री बने। किसानों में जागृति पैदा करने के लिए ‘किसान गजट’ के नाम से साप्ताहिक अखबार निकाला, जिसमें लिखा कि ‘गरीबी धरती पर सबसे बड़ी बुराई है’। सर छोटूराम का किसान गजट में सबसे प्रभावित लेखा था ‘ठग बाजार की सैर’ तथा ‘बेचारा जमींदार’ जिसके 17 लेख प्रकाशित हुए। बेचारा जमींदार का पहला लेख 1935 में तथा दूसरा 1936में प्रकाशित हुआ।
नैशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी की वर्ष 1923 में बनाई गई योजनाएं
नैशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी का गठन दीनबंधू सर छोटूराम ने मुख्यत: निम्नलिखित लक्ष्यों की पूर्ति करने के लिए किया था :-
पार्टी के मुख्य लक्ष्य तथा इन्कलाब की लड़ाई
उपरोक्त मुख्य लक्ष्यों के अतिरिक्त कई और भी उद्देश्य भी पार्टी के थे। चौधरी छोटूराम ने किसानों को सन्देश दिया था कि वह चीज जिसे सियासत कहते हैं और इन्कलाब वह वर्ग संघर्ष के सिवाय और कोई चीज नहीं है। ऐसे इन्कलाब की लड़ाई उस स्टेज (प्लेटफार्म) से नहीं लड़ी जा सकती है, जहां विरोधी तत्व इक्ट्ठे हों, इसलिए मैंने इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कांग्रेस का त्याग कर किसानों की अपनी राजनैतिक पार्टी ‘जमींदारा पार्टी’ बनाई। आपसे मैं आशा करता हूं कि जिस दीपक में मैंने तेल और बाती डालकर रौशनी पैदा की है उसे किसान भाईयो कभी बुझने मत देना। ऐसा करने पर दुश्मन कभी तुम पर वार नहीं कर पाएगा।
कृषक समाज जागृति का सूत्रपात
इन लेखों ने कृषक समाज में जागृत पैदा कर दी है। सर छोटूराम ने किसानों की दशा और उनके ऊपर चढ़े हुए कर्जों के कारणों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि कर्जों का मुख्य कारण खेती पर सरकारी लगान तथा कृषि जिन्सों के लागत से कम मिलने वाले मूल्य हैं। इन्हीं कारणों से ही किसान की दशा बद से बदतर हुई है और यह निरन्तर इन्हें बर्बादी की तरफ ले जा रही है।
लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य
सर छोटूराम ने बाजार द्वारा निर्धारित कृषि जिन्सों के मूल्यों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि बाजार मूल्य किसानों को कर्जमुक्त नहीं कर सकते। उनका कहना था कि किसानों को कर्जे से राहत तथा छुटकारा तभी मिलेगा, जब तक सरकार कृषि जिन्सों के न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से तीन गुना लाभ जोड़कर निर्धारित करे। ऐसा करने से ही किसान ऋणमुक्त हो सकते हैं और अपने बच्चों को शहरी छात्रों के ही समान अच्छे स्कूलों में शिक्षित कर अपना जीवन स्तर ऊपर उठा सकते हैं। जब तक शहरी छात्रों के समान उच्च गुणवत्ता की शिक्षा ग्रामीण बच्चे हासिल नहीं करेंगे किसान समाज की प्रतिष्ठा स्थापित नहीं होगी।
सर छोटूराम द्वारा बनाए गए कानून
वर्ष 1939 में सर छोटूराम पुन: झज्जर से चुनाव जीते और पंजाब के राजस्व मंत्री बने। चौधरी छोटूराम ने मंत्री रहते किसानों से ब्याज पर लिए जाने वाले ब्याज को कानून बनाकर समाप्त करवाया। पंजाब कर्ज राहत एक्ट तथा पंजाब देनदारी संरक्षण एक्ट 1936 बनाकर कर्जदार किसानों को कर्ज के चंगुल से मुक्ति दिलाई। सर छोटूराम ने ही कृषि उपज मण्डी एक्ट 1939 बनाया। जिसमें दो तिहाई प्रतिनिधित्व किसानों का और एक तिहाई व्यापारियों का निर्धारित किया, ताकि गरीब किसान लखपति व्यापारियों के पास बैठकर उनका नेतृत्व कर सके। 1938 में इन्होंने पंजाब मनीलैण्डर्स एक्ट पास कराया, जिसका कांग्रेस ने विरोध किया। परन्तु विरोध के बावजूद इसे पास कराया। चौधरी छोटूराम ने कहा था कि पंजाब में 2 करोड़ 35 लाख बाशिदें है, जिसमें से 2 करोड़ 12 लाख कर्जदार किसान हैं। पंजाब के 3 लाख 65 हजार किसानों को 8 लाख 35 हजार एकड़ भूमि वापिस दिला दी। 1940 में टे्रड एम्प्लाईज एक्ट बनाकर श्रमिकों को सप्ताह में एक दिन का अनिवार्य अवकाश, माह में एक सवैतनिक आकस्मिक अवकाश तथा सेवामुक्ति से पूर्व नोटिस व एक माह के वेतन का प्रावधान किया। मजदूरों के तीन इकाई परिवार के लिए 2700 कैलोरी का भोजन, वर्ष में 72 गज कपड़ा, 20 प्रतिशत मजदूरी का मकान किराया तथा 25 प्रतिशत शिक्षा तथा चिकित्सा खर्च देकर ही मजदूरों का जीवन स्तर ऊपर उठ सकता है।
औरतों पर अत्याचार बंद करें
लार्ड वेवल से भिडंत और गेहूं का समर्थन
किसानों को सम्पत्ति कुर्की से छुटकरा
राजस्व मंत्री रहते प्रधानमंत्री सर सिकन्दर हयात खां की इजाजत लिए बिना अदालत द्वारा डिग्री पारित करने के बावजूद कानून बनाया कि खेती-बाड़ी कर्जों की वसूली नहीं होने पर भी किसानों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा और 5 हजार रुपए तक की सम्पत्ति कुर्क नहीं की जा सकेगी। इस प्रकार किसानों के पशु खाद, पशु चारा, 20 मण तक खाने के लिए बचाकर रखे अनाज को भी अदालती कुर्की से मुक्त कर दिया। इन कानूनों के बनाने से नाराज होकर प्रधानमंत्री ने छोटूराम को कहा कि जो कानून आपने बनाए हैं यह सब फैडरल कोर्ट नियमों के विरूद्ध हैं और मैं आपको मंत्री पद से बर्खास्त कर दूंगा। इस पर सर छोटूराम ने कहा कि चाहे जो मर्जी हो जाए मैं अपने मिशन से नहीं हटूंगा।
शोषण विरोधी कार्य – प्रवृत्ति – काणी डण्डी काणे बाट
सर छोटूराम हर प्रकार के शोषण के खिलाफ थे न की किसी जाति विशेष के। उनका कहना था कि ‘काणी डण्डी, काणे बाट’ कतई नहीं छोड़ूंगा, सर छोटूराम ईमानदारी व स्वच्छ कार्य में ही विश्वास रखते थे।
व्यापारियों के हितैषी
सर छोटूराम व्यापारियों के भी हमदर्द थे, परन्तु कुछेक व्यापारियों द्वारा तौल में गड़बड़ी करने और उसकी रोकथाम करने के लिए इन्होंने बैकिंग जांच-पड़ताल कमेटी का गठन किया, जिसने रिपोर्ट प्रस्तुत कर अंकित किया है कि पांच जिलों में 2777 कांटों का निरीक्षण करने पर 1164 कांटे (42 प्रतिशत) दोषपूर्ण पाए गए। 75 प्रतिशत वजन करने वाले बाट गलत पाए गए तथा 763 छोटी तराजुओं का निरीक्षण करने पर 477 तराजू (65 प्रतिशत) खराब पाई गई। रिपोर्ट में यह भी अंकित किया है कि हर दुकानदार के पास दो-दो तराजू पाए गए, जिसमें माल खरीदने का तराजू अलग है और बेचने का तराजू अलग पाया गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही सर छोटूराम ने सही तौल सुनिश्चित करने के लिए तराजुओं के अपरी आधार (बैलेंस) में ‘सुई’ स्थापित करने तथा हर वर्ष आवश्यक रूप से बट्टों का निरीक्षण कर मोहर लगाने व इसका सरकारी प्रमाण-पत्र प्राप्त करने का नियम बनाया।
सर छोटूराम का कहना था किसान और व्यापारी एक दूसरे के हितैषी हैं और यदि दोनों ईमानदारी से एक दूसरे का सहयोग करें तो इनके संगठन को कोई ताकत नहीं तोड़ सकती। दूसरे विश्वयुद्ध (1942) के आरम्भिक वर्षों में देश में अनाज की भंयकर कमी हो गई थी। एक जिले से दूसरे जिले में अनाज ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सर छोटूराम के रिश्तेदार कालू सिंह ने इनसे कहा कि मुझे सिंध से 5000 बोरी चावल रोहतक व हिसार जिले में लाने के लिए परमिट जारी करवा देवें। इस पर सर छोटूराम ने कालूसिंह को कहा कि क्या तेरे पूर्वजनों ने भी व्यापार किया है? यह काम महाजनों का है मैं तुझे परमिट नहीं दूंगा। इस बात से नाराज होकर कालूसिंह कराची चला गया और वहां जाकर किसी के माध्यम से प्रधानमंत्री सिकन्दर हयात खां से मुलाकात कर 5000 बोरी चावल का परमिट हासिल कर लिया। परमिट लेकर कालू सिंह लाहौर आ गया और सर छोटूराम को बताया कि देखो मैं तो परमिट ले आया। इस पर सर छोटूराम ने कालूसिंह से पूछा कि इस सौदे में कितना मुनाफा होगा तो कालूसिंह ने बताया 600/- रुपए। सर छोटूराम ने अपने पी.ए. को बुलाकर कहा कि इसको 600/- रुपए दे दो और परमिट निरस्त कर दिया। इस प्रकार सर छोटूराम ने व्यापारियों, किसानों, मजदूरों तथा दलितों के हितों का आपस में कभी भी अपहरण नहीं होने दिया।
विधानसभा में व्यापारियों को प्रतिनिधित्व
विधानसभा सीटों में भी महाजनों के लिए 10 प्रतिशत सीटें आवंटित करने का प्रावधान बना रखा था। वर्ष 1944 के पंजाब असैंबली चुनावों में कुल 175 सीटों में से 18 सीटें महाजनों को दी। इस चुनाव में जालन्धर से लाला दूनीचन्द, अम्बाला से लाला गोकुल चन्द, हिसार से लाला रामसरन दास, अमृतसर से लाला श्याम लाल गुप्ता, रावलपिण्डी से सेठ मातुराम बिन्दल, डेरा गाजी खां से लाला भगवानदास अग्रवाल, करनाल से सेठ घासीराम भरतिया तथा फिरोजपुर से लाला विलायतीराम सिंगला जीते। लाला दुनीचंद तथा लाला भगवानदास अग्रवाल को मंत्री परिषद में भी शामिल किया गया।
व्यापारियों को लाईसेंस तथा स्थाई दुकानें आवंटित
सन् 1939 की एक घटना ने चौ. छोटूराम को द्रवित कर दिया सर्दियों के दिन थे और लाहौर शहर के बाहर सड़क मार्ग के दोनों तरफ व्यापारी तम्बू लगाकर कपास किसानों से हाट बाजार लगाकर खरीदते थे। एक दिन वहां भयंकर आग लग गई और 16 व्यापारियों तथा 3 किसान जलकर मर गए। सर छोटूराम उस वक्त राजस्व मंंत्री थे। इन्होंने सन् 1939 में कृषि उपज मण्डी समिति कानून बनाकर स्थाई मंडिया बना दी और व्यापारियों को स्थाई रूप से दुकानें अलॉट कर कहा एक दिन ये व्यापारी भाई इन मंडियों में शान से अपना व्यापार चला सकेंगे और जिन दुकानों की जमीन आज रुपए 12/- प्रति दुकान हमारी सरकार ने ली है ये एक दिन लाखों रुपयों की हो जाएगी। इस प्रकार व्यापार तथा व्यापारी दोनों में खुशहाली आएगी।
उद्योगों की स्थापना
वैश्य समाज का जागीरदारी उन्मूलन में योगदान
सेठ देवीबक्श सर्राफ (अग्रवाल) वैश्य जाति में प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने ठिकाने के सामने किसानों की सहायता के लिए सिर उठाया। ठिकानेदार ने सेठजी को नीचा दिखाने व आतंक फैलाने के लिए सरे बाजार उनका अपमान किया। सेठजी ने दुगुने जोश से किसानों में जनोपदेशकों को भेजकर, शेखावाटी क्षेत्र में कई स्कूल खुलवाए, ताकि किसानों के बच्चों को शिक्षित कर इस लड़ाई में शामिल किया जा सके। सर छोटूराम ने सीकर में यज्ञोपवीत कराकर उनमें जागृति पैदा की। किसान वर्ग में कुंवर पन्नेसिंह (देवरोड़), रामसिंह (कंवरपुरा), भूदाराम (सांगासी) ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें किसानों का प्रथम ‘प्रकाश स्तम्भ’ कहा जा सकता है, जो सम्पूर्ण शेखावाटी (झुझुनूं-सीकर) परगने को नेतृत्व देते हुए आगे बढ़ रहे थे। इन्हीं नेताओं के प्रथम संगठन ‘जाट सभा’ की स्थापना झुझुनूं के बगड़ गांव में 1925 में की थी। यह ठिकानेशाही के अत्याचारों के खिलाफ संगठन खड़ा करने की दिशा में प्रथम प्रयास था। लादूराम (किसारी), गोविन्दराम (हनुमानपुरा) व पं. लेखराम शर्मा (पचेरी) इनके सहयोग, जागरुक कार्यकर्ता कहे जा सकते हैं। सीकर परगने में मूलचंद अग्रवाल व देवीसिंह बोचल्या ने सर्वप्रथम 1930 में ‘खण्डेलवाटी जाट पंचायत’ की स्थापना की। 20 जनवरी 1934 को सीकर में ‘जाट प्रजापति महायज्ञ’ सर छोटूराम के नेतृत्व में आरम्भ हुआ, जिसका समापन 29 जनवरी को हुआ।
मुलतान जिले (हाल पाकिस्तान) में दलितों को कृषि भूमि देना
छुआछूत बुराई कानून
मुस्लिम समाज से भाईचारा
सर छोटूराम ने नेशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी वर्ष 1923 में बनाई, परन्तु सर फजली हुसैन जिन्होंने इंग्लैण्ड से वकालत की थी को इसका अध्यक्ष बनाया। जब जमींदारा पार्टी वर्ष 1935 में सत्ता में आई तब सर सिकन्दर हयात खां एक मुस्लिम को वजीरे आला (मुख्यमंत्री) बनाया। सर सिकन्दर हयात खां लन्दन स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से पढ़े विद्वान थे जो उस समय रिजर्व बैंक – दिल्ली में इसके गवर्नर थे। सर सिकन्दर हयात खां के देहान्त के बाद इन्होंने उसके पुत्र सर खीजर हयात खां को वजीरे आला बनाया। सन् 1945 में चौधरी छोटूराम के देहान्त के बाद सर खीजर हयात खां को इतना सदमा लगा कि वह देश छोड़कर इंग्लैण्ड यह कहते हुए चला गया कि जब चाचा ही नहीं रहे तो अब शासन किसके सहारे करूंगा।
राजपुताना में कुम्हारों पर लगी ‘चाक लाग’ को समाप्त कराया
दीनबन्धु सर छोटूराम ने राजपुताने के राजाओं तथा ठिकानेदारों द्वारा कुम्हारों के घड़े व मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने पर ‘चाक लाग’ लगा रखी थी जो रु. 5/- वार्षिक अदा करनी पड़ती थी। राजाओं का कहना था कि जिस मिट्टी से कुम्हार बर्तन व घड़े बनाकर बेचते हैं वह मिट्टी राजाओं की जमीन की है, इसलिए यह लाग देनी पड़ेगी। सर छोटूराम ने 5 जुलाई 1941 को बीकानेर में कुम्हारों को इक्ट्ठा कर महाराजा गंगासिंह से बातचीत कर इन्हें इस ‘चाक लाग’ से मुक्ति दिलाई। कुम्हारों ने खुश होकर सर छोटूराम को एक सुन्दर ‘सुराही’ जिसमें पानी ठण्डा रहता हंै भेंटकर सम्मान किया। सर छोटूराम ने मरते दम तक वह सुराही अपने पास रखी।
‘कतरन लाग’ से नाइयों तथा नायकों को मुक्ति
नायक तथा बावरी जातियां भेड़-बकरियां पालती थी। भेड़-बकरियों के बाल तथा ऊन कतरने पर ठिकानों ने ‘कतरन लाग’ लगा रखी थी। इसी प्रकार नाइयों द्वारा बाल काटने का धन्धा करने पर इस कतरन लाग का भुगतान करना पड़ता था। सर छोटूराम ने 26 जुलाई 1941 को मारवाड़ के गांव रतनकुडिय़ा तथा पहाड़सर में भेड़-बकरी पालकों को इक्ट्ठा कर ‘कतरन लाग’ के विरूद्ध प्रदर्शन कर इस ‘कतरन लाग’ से इन्हें मुक्ति दिलाई।
‘बुनकर लाग’ का उन्मूलन कर बुनकरों को राहत
बुनकर जो अधिकतर जुलाहे मेघवाल समाज से होते थे जो डेवटी की रजाई का कपड़ा, खेस, चादर तथा मोटा कपड़ा रोजी रोटी कमाने के लिए बुनकर बेचते थे। सूत गृहणियां कातकर उन्हें देती थी और वे उस सूत से उनकी इच्छानुसार वस्तुएं बुनकर दे देते थे। शेखावाटी तथा मारवाड़ और विशेषतौर पर जयपुर, पाली तथा बालोतरा में यह काम जोरों पर था। ठिकानेदारों न इस काम पर ‘बुनकर लाग’ रखा रखी थी। जिसका विरोध 4 वर्षों तक सन् 1937 से 1941 तक सर छोटूराम ने अपनी अगुवाई में करके समाप्त कराया। बालोतरा में 9 अगस्त 1941 को ठिकानेदारों ने जुलाहों के घरों को लाग नहीं देने पर आग लगा दी जिससे सारा कपड़ा जल गया। सर छोटूराम वहां गए और 8 दिन भूख हड़ताल की तब जाकर जोधपुर के राजा का सन्देश आया कि यह लाग समाप्त कर दी गई है। सर छोटूराम ने 28 मेघवाल परिवारों को नुकसान की भरपाई के लिए रु. 1500/- प्रत्येक परिवार को राजा से दिलवाने की मांग पर अड़ गए। तीन दिन बाद राजा ने प्रत्येक परिवार को रु. 1500/- देने की घोषणा की। ऐसे संघर्ष सर छोटूराम ने मंत्री पद पर रहते हुए किसानों और दलितों की भलाई के लिए किए जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
जागीरदारी प्रथा – लगान वसूली व बेगारों में निर्दयता
रियासती काल में ठिकानें जागीरदारों के अधीन थे। जागीरदार उनसे अनेक प्रकार की श्रमसाध्य और जानलेवा बेगारें लेते थे। ये जागीरदार बड़े ही निरंकुश और अत्यन्त मनमानी करने वाले माने जाते थे। जागीरदार की मर्जी ही कानून था। यदि किसान से लगान वसूली नहीं होती तो किसान को पकड़कर ठिकाने के गढ़ या हवेली में लाया जाता और उसके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था, जैसे – काठ में डाल देना, भूखा रखना आदि दण्ड – उपाय, जो एक जघन्य अपराधी के खिलाफ भी प्रयोग में नहीं लिए जाते थे। गरीब किसान के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक किन्तु आक्रोश पैदा करने वाली स्थिति थी। इन सजाओं की कोई सीमा न थी, कोई कानून न था, कोई व्यवस्था न थी और कोई विधि-विधान भी न था। खड़ी खेती कटवा लेना, पशु खुलवाकर हांक ले जाना, घर-गृहस्थी के बर्तन, कपड़े लते उठा लेना और किसान की मुश्कें कसवा देना साधारण बात थी। दाढ़ी-मूछें उखाड़ लेना, भूमि से बेदखल कर देना कोई बड़ी बात न थी। किसान तथा उसके परिजनों को गोली का निशाना तक बनाया जाने लगा था। जागीरदार की हवेली में हाथ का पंखा दलितों से खिंचवाया जाता था और थोड़ी चूक करने पर अपशब्द बोले जाते थे।
सामाजिक दमन चक्र
सामाजिक दमन का चक्र कितना गम्भीर था, इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ पिछड़ी जातियों के लोग वहां के सवर्ण जातियों के लोगों के सामने चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे। उनके सामने पांचों कपड़े नहीं पहन सकते थे। यह लोग किसी तीर्थ में स्नान भी नहीं कर सकते थे। जागीरदार के घर बेटी पैदाहो गई तो एक मण अनाज की लाग किसान पर थी जिसे ‘बाई जामती की लाग’ कहते थे और लड़की की शादी होने तक हर साल गाजर, मूली, शकरकन्द की एक क्यारी किसान को देनी पड़ती थी। नाच-गानों का मेहनताना 5 सेर अनाज ढाढ़ी का व 5 सेर भगतण को किसान को ही देना पड़ता था।
किसान की जाति क्या है
चौधरी छोटूराम ने कहा था कि किसान की जाति उसकी पार्टी है। आज से जो किसान होगा चाहे वह दलित हो या सवर्ण, अगर वह जमींदारा पार्टी से जुड़ा है तो वह जमींदार कहा जाएगा। वह जमींदारा पार्टी का सच्चा सिपाही और जमींदार होगा।
युवा वर्ग व नारियों को उचित प्रतिनिधित्व
स्टूडेन्ट्स कान्फे्रंस
लाहौर में बूचडख़ाने की योजना बन्द करवाई
सन् 1935 में अंग्रेजी हुकूमत ने लाहौर में एक सरकारी बड़ा बूचडख़ाना स्थापित करने की स्वीकृति दे दी। इस बूचडख़ाने से भारत की अंग्रेजी फौजों के लिए गोमांस सप्लाई करने के लिए सैकड़ों गायें रोजाना काटी जानी थी। सन् 1936 में केन्द्रीय सरकार के हुकुम और खर्चे से मुगलपुरा लाहौर में इस बूचडख़ाने कफ तामीर शुरु कर दी। चौधरी साहब को अख्तयार नहीं था कि वे किसी केन्द्र सरकार की योजना को बन्द करा दें, परन्तु इन्होंने इसको बन्द करवाने के लिए जन आन्दोलन का रास्ता अख्तयार कर बूचडख़ाने के विरूद्ध आन्दोलन शुरु करवा दिया। हजारों किसान 100-100 मील दूर से सफर करते हुए लाहौर में प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे। गौरक्षा के लिए किसानों और उनके साथी बिरादरियों में तूफान खड़ा हो गया। वजीरे आला पंजाब तथा चौधरी छोटूराम राजस्व मंत्री ताजेहिन्द (वायसराय) मि. लीलिथगो से मिले, और उनको चेतावनी दी कि हालत काबू से बाहर जा सकते हैं और पंजाब का जमींदार बूचडख़ाने की स्थापना से नाराज है। मालवा व मांझे का किसान धार्मिक जज्बे से इसके खिलाफ भड़का हुआ है। वायसराय लीलिथगो ने डर के मारे बूचडख़ाने की तामीर बन्द करवा दी। ऐसा नेतृत्व था चौधरी छोटूराम का।
फिरकापरस्ती के खिलाफ संघर्ष
लायलपुर में किसान महासभा
किसानों को जीवन की आखिरी सौगात
वर्तमान समय मे पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान को सतलुज नदी का पानी जो मिल रहा है, जिससे इन राज्यों में हरियाली छाई हुई है यह भी चौधरी छोटूराम की देन है। भाखड़ा नांगल डैम की योजना चौधरी साहब के द्वारा बनाई गई थी। यह योजना उनकी किसानों को आखिरी सौगात थी। भाखड़ा नांगल डैम योजना के निर्माण का प्रारम्भिक काम, नक्शा व डिजायन सर लुई डेन जो उस वक्त पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे कि अध्यक्षता में पूरा किया। 8 जनवरी 1945 को पूरी रात भाखड़ा नांगल डैम योजना की फाईलों पर हस्ताक्षर किए और 9 जनवरी 1945 को सुबह इनका देहान्त हो गया। चौधरी साहब ने मरते वक्त किसानों को सन्देश दिया था कि – झुको मत और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो। मैंने तुम्हें तुम्हारी जमीन ही नहीं लौटाई, बल्कि उसकी सिंचाई तथा रख-रखाव को भी सुनिश्चित किया है। परमात्मा तुम्हारा सबका भला करे।
कृषि क्रान्ति का सूत्रपात
वर्ष 1936 में इन्होंने लायलपुर कृषि महाविद्यालय की स्थापना की। 1937 में ही कृषि की बढ़ोत्तरी के लिए महकमें का तैयार किया हुआ बेहतर बीज जमींदारों को देने के लिए एक हजार एजेन्सियां स्थापित की गई। 1937 में फसल कपास की बिजाई के लिए 95,000 मण अच्छे क्वालिटी के बीज तकसीम किए गए, 2,78,000 मण गेहूं का नया बीज खासतौर पर सी-593 तकसीम किया गया (यह बीज चौधरी रामधनसिंह किलोई निवासी प्रिंसीपल गवर्नमेंट एग्रीकल्चर कॉलेज लायलपुर ने तैयार किया था। इसी कारण चौधरी रामधनसिंह को अमरीका में चोटी का कृषि पण्डित माना गया था)। जमींदारों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए अच्छे बीज तैयार करने के लिए नई कॉलोनियों में 7,700 एकड़ रकबे में सरकारी बीज के फार्म जारी किए गए। 1937-38 के बजट में इस योजना के लिए 36 लाख 24 हजार 4 सौ 90 रुपया सुरक्षित किया गया।
किसानों के एकमात्र हितैषी
सर छोटूराम की गोल्डन जुबली के समय रोहतक में दो लाख आदमियों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए पंजाब के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर सिकन्दर हयात खां ने कहा था कि सर छोटूराम जैसा काम किसानों की भलाई के लिए और कोई इंसान कभी नहीं कर सकता। इसके द्वारा किसानों की भलाई के लिए किए कार्यों को कई पीढिय़ों तक याद किया जाएगा। वास्तव में सर छोटूराम ने ऐसा कोई काम बाकी नहीं छोड़ा, जो भविष्य में किसानों की भलाई के लिए किया जाना बाकी रह गया हो। इसलिए आने वाली पीढिय़ों को किसी और सर छोटूराम के अवतार की जरूरत नहीं। इनको याद करने मात्र से ही समस्याओं का समाधान हो जाएगा। सर छोटूराम जी का जन्म तो 24 नवम्बर 1881 को हुआ था, परन्तु उन्होंने इच्छा प्रकट की थी कि मेरा जन्मदिन बसंत पंचमी के दिन ही मनाया जाए। 9 जनवरी 1945 को इनका देहान्त लाहौर में हो गया था।